हमारा परिवेश

by आलोक वर्मा

      उत्तर प्रदेश - प्राकृतिक बनावट व रहन - सहन Uttar Pradesh - Natural Structure & Lirihood ) उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश की बनावट सभी स्थानों पर एक जैसी नहीं कहीं ऊँचा - नीचा तो कहा समतल मैदान है और कहीं कंकरीली - पथरीली भमि है । 

इस प्रकार बनावट के आधार पर प्रदेश के प्राकृतिक भू - भाग को तीन भागों में बाँट सकते हैं 

1 . भाबर एवं तराई का भाग 

2 . गंगा - यमुना का मैदानी भाग 

3 . दक्षिण का पठारी भाग 


हर एक भाग के लोगों का रहन - सहन , पहनावा , काम - धन्धे , आदतें भी उनकी भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार अलग - अलग हैं । उत्तरी भाग में चारों ओर बर्फ से ढंके ऊँचे - ऊँचे पहाड़ दिखाई पडेंगे । इस भाग में अधिक ठड पड़ती है जिसके कारण वहाँ वनस्पति व जीव - जन्तु बहुत कम पाये जाते हैं । यह भाग बर्फ से ढकी मिट्टी , ककड़ - पत्थर और बड़ी - बड़ी चट्टानों से बना है । यह भाग उत्तराखण्ड है । पहले उत्तराखण्ड उत्तर प्रदेश का उत्तरी भाग था । जो अब भारत का एक अलग राज्य बन गया है । इसका धरातल मुख्य रूप से पर्वतीय है । उत्तर प्रदेश की अधिकांश नदियाँ उत्तराखण्ड के इसी बर्फीले भाग से निकलती है । छोटी - छोटी धाराएँ आगे चलकर बड़ी - बड़ी नदियाँ बन जाती हैं । गंगा , यमुना , रामगंगा , घाघरा , गोमती , सरयू आदि ऐसी ही नदियाँ हैं । 

1 . भाबर व तराई का भाग - भाबर व तराई का कुछ भाग उत्तर प्रदेश और कुछ भाग उत्तराखण्ड में पड़ता है । हिमालय के पर्वतीय भाग से नीचे तथा मैदानी भाग से ऊपर भाबर व तराई वाला भाग है । नीचे उतरने वाली नदियों जैसे - गंगा , यमुना , रामगंगा , घाघरा आदि का बहाव इस भाग में आकर धीमा हो जाता है । नदियाँ पहाड़ों से लायें रोड़े - पत्थरों व मोटी मिट्टी को इस भाग में जमा कर देती हैं । सेड़ - पत्थरों और मोटे कणों से बनी मिट्टी का यह भाग भाबर कहलाता है । इसी का निचला भाग तराई है । भाबर वाले भाग से तराई वाला भाग अधिक नीचा है । यहाँ भाबर की तरह रोड़े - पत्थर नहीं हैं । इसके अलावा यहाँ जमीन के नीचे थोड़ी ही गहराई पर पानी निकल आता है और यहाँ की हवा में नमी रहती है । नम या तर जलवायु के कारण इसे तराई का भाग कहते हैं । इस भाग का मौसम मैदानी व पठारी भागों की तुलना में कम गर्म होता है पर यहाँ पहाड़ी भाग की तुलना में अधिक गर्मी पड़ती है । यहाँ मैदानी भाग से अधिक वर्षा होती है । वर्षा अधिक होने के कारण भाबर - तराई में काफी घने वन है । इनमें शीशम , साल , साखू व खैर के चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष पाये जाते हैं । जाडों में इनकी पत्तियाँ गिर जाती हैं । बाँस और बेंत की झाड़ियाँ भी कहीं - कहीं पाई जाती हैं । इन जंगलों में ऊँची - ऊँची घास उगती है । इनमें हाथी . बाघ , तेदुआ , जगली सूअर । नीलगाय , हिरन आदि जानवर मिलते हैं । वन एवं वन्य जीवों की सुरक्षा एवं विकास के लिए सरकार द्वारा दुधवा नेशनल पार्क स्थापित किया गया है । यह लखीमपुर - खीरी एवं बहराइच जिले में फैला हुआ है । इसमें जंगली जानवर स्वछन्द रूप से घूमते हैं । यह उद्यान एक पर्यटक स्थल भी है जिसे देखने के लिए लोग दूर - दूर से यहाँ । आते हैं । 


काम - धन्धे - इस पूरे क्षेत्र में सिंचाई की अच्छी व्यवस्था है । अधिकतर सिंचाई नलकूपों व नहरों से होती है । लोग खेती करते हैं या कागज , फर्नीचर , चीनी उद्योग या दस्तकारी में लगे हैं । यहाँ के खेतों में पैदावार अधिक होती है । गन्ना , धान तथा गेहूँ खूब पैदा होता है । बड़ी - बड़ी मशीनों से फसल काटी जाती

गन्ने से चीनी बनाने वाली बहुत - सी मिलें इस भाग में हैं । तराई में बहुत - सी चावल मिलें भी हैं । पीलीभीत , लखीमपुर खीरी , बहराइच आदि इस भाग के मुख्य शहर हैं ।

रहन - सहन - थारू ' और ' बोक्सा ' लोग इस क्षेत्र के सबसे पुराने निवासी हैं । अब इस क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के सभी भागों से लोग आकर रहने लगे हैं । पंजाब और पूर्वी बंगाल से आए लोग भी यहाँ बसे हुए हैं । इस क्षेत्र में कुमाऊँनी , गढ़वाली , भोजपुरी , पंजाबी व बांग्ला आदि भाषाएँ बोली जाती हैं ।

2 . गंगा - यमुना का मैदान - भाबर और तराई के दक्षिण में उत्तर प्रदेश का मैदानी भाग है । दूर तक फैला यह समतल मैदान नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी से बना है । यह बहुत उपजाऊ है । यह मैदान पश्चिम की ओर ऊँचा तथा पूर्व की ओर नीचा है । इसका ढाल दक्षिण - पूर्व की ओर होने के कारण सभी नदियाँ प्रदेश की पूर्वी दिशा की ओर बहती हैं । इस क्षेत्र में मटियार , दोमट व रेतीली दोमट मिट्टी पायी जाती है । इस भाग में अधिक वर्षा पड़ती है । गर्मियों में अधिक गर्मी तथा जाड़ों में अधिक सर्दी पड़ती है । इस क्षेत्र में बहत कम वन बचे हैं । इनमें साल , साखू , शीशम , पलाश आदि वृक्ष मिलते हैं । ये वक्ष तराई के वृक्षों से छोटे होते हैं । जाड़ा समाप्त होते - होते इनका । पत्तियाँ गिर जाती है इसलिए इन वनों को पतझड वन भी कहते हैं । 

मैदानी भाग के वनों में भेड़िये , तेंदुए , जंगली सुअर आदि जानवर देखने को मिलते हैं । 

काम - धन्धे - नहरों से सिंचाई की सुविधा होने के कारण प्रदेश में सबसे ज्यादा गेहूँ , धान व इस क्षेत्र की प्रमख नकदी फसल गन्ना इसी भाग में होता है । इनके अलावा मक्का , ज्वार , बाजरा , दालें और तिलहन की फसलें भी उगाई जाती हैं । बलुई मिटटी में खरबूजा , तरबूज , ककड़ी , खीरा खूब पैदा होता है । इस भाग के अधिकांश लोग खेती करते हैं । लोग कारखानों में । भी काम करते हैं । यहाँ की दस्तकारी प्रसिद्ध है । गाजियाबाद । नोएडा , अलीगढ़ , आगरा , कानपुर , लखनऊ , इलाहाबाद वाराणसी , फैजाबाद व गोरखपुर आदि इस भाग के प्रमुख नगर है

रहन - सहन - प्रदेश के मैदानी भाग में कई भाषाएँ बोली जाती हैं । पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खड़ी बोली और ब्रज भाषा बोली जाती है । मध्य भाग में अवधी व पूर्वी भाग में भोजपुरी बोली जाती है । ब्रज , अवधी और भोजपुरी के लोकगीत सुनने में बड़े मीठे लगते हैं । गीत गाते समय इस भाग के लोग ढोलक , ' मजीरा , हारमोनियम , बाँसुरी आदि बजाते हैं ।

3 . दक्षिण का पठार - जमीन से ऊँचे उठे समतल मैदान को पठार कहते हैं । गंगा के मैदान के दक्षिण में इस प्रदेश का पठारी भाग है । इस भाग में जगह - जगह छोटी - छोटी पथरीली पहाड़ियाँ हैं । हवा , पानी और धूप के कारण ये टूट - फूट और घिस गई हैं । ये बहुत ऊबड़ - खाबड़ हैं । इनके बीच में कहीं - कहीं समतल मैदान भी हैं । इस भाग का ढाल उत्तर प्रदेश के मैदानी भाग की ओर है । गर्मियों में चट्टानें पथरीली होने के कारण बहुत गर्म हो जाती हैं । इस कारण मैदानी भाग की अपेक्षा इस भाग में अधिक गर्मी पड़ती है । इन दिनों ताल , पोखर व कुएँ सूख जाते हैं । पीने के पानी की कमी हो जाती है । वर्षा ऋतु में यहाँ कम वर्षा होती है । जाड़े की ऋतु में यहाँ सूखी ठंड पड़ती है । 

• इस भाग में लाल और काली मिट्टी की बहुतायत है । यहाँ के वनों में तेंदू , खैर , पलाश , बाँस तथा कास के वन मिलते हैं । गर्मियों में पलाश के वृक्ष सुन्दर लाल फूलों से लद जाते हैं । कहीं - कहीं कँटीली झाड़ियाँ और घास उगती है । 

वन्यजीव - वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा कैमूर वन्यजीव विहार स्थापित किया गया है । यह मिर्जापुर एवं सोनभद्र जिले में स्थित है । यहाँ चिकारा , काला हिरन , चीतल , साँभर तथा इन पर निर्भर रहने वाले तेन्दुआ , लकड़बग्धा , भेड़िया आदि प्रमुख वन्य जीव पाये जाते हैं । यह वन्य जीव विहार मुख्यतः संकटग्रस्त प्रजाति काले हिरन ( ब्लैकबक ) एवं समाप्त होते पक्षियों में गिने जा रहे गिद्धों की सुरक्षा के लिए स्थापित किया गया है ।

काम - धन्धे - इस भाग में किसान गेहूँ , चना , राई , अलसी आदि उगाते हैं । खरीफ की फसल में पठारों पर ज्वार , बाजरा , तिल तथा दालें पैदा की जाती हैं । चम्बल की घाटी में मौसमी बाग लगाये जाते हैं । यहाँ पर बड़ी मात्रा में खट्टे रसीले फलों के बाग हैं ।
सिंचाई की सुविधा वाले स्थानों पर खेती की जाती है । चम्बल . बेतवा , केन तथा सोन नदियों पर बाँध बनाकर नहरें निकाली गई हैं । इन नहरों से बहुत बड़े क्षेत्र की सिंचाई होती है । खेती योग्य भूमि यहाँ कम है । बहुत से लोग पत्थर की खदानों में काम करते हैं । यहाँ खैर के वृक्षों से कत्था निकाला जाता है । जंगलों में पेड़ों से लाख इकट्ठी की जाती है ।

  रहन - सहन - इस भाग की आबादी छितरी हुई है । यहाँ गाँव और शहर दूर - दूर बसे है । झाँसी , महोबा , जालौन , ललितपुर , बाँदा , मिर्जापुर , सोनभद्र आदि पठारी भाग के मुख्य शहर हैं । बरसात के मौसम में यहाँ आल्हा और कजरी गाई जाती है । यहाँ पश्चिमी पठारी भाग में भोजपुरी बोली जाती है । 


खनिज सम्पदा के क्षेत्र ( Region of Mineral Resources ) चूना पत्थर - मिर्जापुर , राबर्ट्सगंज डोलोमाइट -. मिर्जापुर , बाँदा ताँबा -. ललितपुर ग्लास सैंड - बाँदा ( कर्वी एवं मऊ ) संगमरमर. - मिर्जापुर यूरेनियम. - ललितपुर

बहुउद्देशीय परियोजनाएँ ( Multipurpose Projects )

1 . रिहन्द योजना - उत्तर प्रदेश की अब तक की सबसे बड़ी योजना है । यह सोन की सहायक रिहन्द नदी पर पिपरी नामक स्थान पर बनाई गई है । इसे गोविन्द बल्लभ पन्त सागर योजना भी कहा जाता है । बाँध के नीचे की ओर ओबरा में बने हुए बिजलीघर से विद्युत मिलती है । 

2 , माताटीला योजना - यह महत्वपूर्ण बाँध झाँसी जिले में बेतवा नदी पर बनाया गया है । इससे गुरसराय तथा मन्दर दो नहरें निकाली गई है । इन नहरों से झाँसी , हमीरपुर एवं जालौन जिलों में सिचाई । की जाती है । इस बाँध के समीप एक जल विद्युत शक्ति गृह भी , बनाया गया है ।
By. आलोक वर्मा 

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