बाल अपराध :कारण एवं प्रकार

by ALOK VERMA

 बाल अपराध :कारण एवं प्रकार

  • मानव समाज में व्यवस्था और सुरक्षा बनाये रखने के लिए वहा की परिस्थितियां और परम्परा आदि के साथ-साथ वहा के विधान के आधार पर कुछ नियम और कानून बनाये जाते है . इनको तोड़ने वाला व्यक्ति अपराधी कहलाता है .
  • अपराध और नैतिक पाप में अंतर है.
  • अपराध वह कृत्य जिसके लिए राज्य दंड डे सकता है .
  • बाल -अपराध से तात्पर्य है किसी स्थान विशेष के नियमो के अनुसार एक निश्चित आयु से कम के बच्चे द्वारा किया जाने वाला अपराध .
  • भारतीय विधान धारा 83 के अनुसार 12 वर्ष से कम आयु वाले नासमझ बालको को अपराधी नहीं नहीं माना जाता.
  • जुनेवाईल जस्टिस एक्ट 1986 के अनुसार बाल/किशोर अपराधी की अधिकतम आयु 16 वर्ष है.
  • सामान्य रूप से बाल अपराधी अवयस्क अर्थात 18 वर्ष से कम माना जाता है .
  • बाल -अपराध के कुछ उदहारण :चोरी ,झगड़ा,और मारपीट,मद्यपान ,यौन अपराध, आत्महत्या ,हत्या, धोखा ,बेईमानी,/जालसाजी ,आवारागर्दी,तोड़-फोड़, छेड़खानी आदि.
  • बाल -अपराध के कारण :
  1. आनुवंशिकता
  2. शारीरिक संरचना
  3. भग्न परिवार/परिवारों में टूटन
  4. अशिक्षित माता-पिता
  5. पक्षपात -परिवार , समाज
  6. अनैतिक परिवार
  7. सौतेली माँ
  8. बुरे साथी/संगत
  9. सामाजिक कुप्रथाए
  10. निर्धनता
  11. बालश्रम/नौकरी
  12. गंदी और घनी बस्तियां
  13. बुद्धि : कभी कभी मंदबुद्धि तो कभी तीव्रबुद्धि बाल-अपराध भी पाए जाते है .
  14. आवश्यकता /इच्छापूर्ति न होने पर मनोविकृति
  15. सही दिशा में मनोरंजन का आभाव
  16. कुसमयोजन की समस्या
  17. संवेगात्मक अस्थिरता
  18. कुंठा
  19. विद्यालयीन कारण : विद्यालय की स्थिति , नियंत्रण का आभाव, मनोरंजन व रोचक प्रणालियों का अभाव , परीक्षा की उचित प्रणाली का अभाव.
  20. क्रो एवं क्रो के अनुसार -" किशोरापराध के पीछे आत्मचेतना और स्वार्थ जैसे तत्व होते है . क्योकि आत्मचेतना के कारण बालक अपनी इच्छाओं की तुरंत पूर्ति करना चाहता है.

बाल -अपराध का उपचार व रोकथाम :


  • परिक्षण काल/प्रोबेशन में रखना . 14 वर्ष से कम उम्र के बालापराधि को प्रोबेशन की देखरेख में रख दिया जाता है.और सुधारने के लिए मार्गदर्शन दिया जाता है .
  • सुधार-विद्यालय/सुधार-गृह इनमे 14 -15 वर्ष तक के बाल -अपराधियों को लगभग 5 वर्ष तक रखा जाता है . कई राज्यों में ऐसे आवासीय विद्यालय भी है जहाँ 16 से 21 वर्ष तक 5 साल तक बाल अपराधी को रखकर पढाया-लिखाया जाता है .
  • कारावास - ऐसा तब किया जाता है जब बाल-अपराधी उम्र में अधिक और अपराध में गंभीर है .
  • परिवार की भूमिका : वातावरण अच्छा रखना,उचित मांगो और जेबखर्च की सीमा पूर्ति तथा मार्गदर्शन ,नियंत्रण और नज़र रखना .
  • विद्यालय में कार्य : योग्य शिक्षक , प्रेम और सहानुभूति , उत्तम वातावरण , व पुस्तकालय , स्वतंत्रता , सुविधा व ध्यान .
  • समाज व राज्य की भूमिका : - बालकों /विद्यार्थियों को राजनीती से दूर रखना . मनोरंजन की स्वस्थ व्यवस्था . गन्दी बस्तियों को समाप्त कर अच्छा वातावरण बनाना . बालश्रम रोकना .
  • मनोवैज्ञानिक उपचार - बाल अपराधी का विश्लेषण , मनोवैज्ञानिक जाँच, निर्देशन एवं उपचार , साक्षात्कार , खेल चिकित्सा , साइको ड्रामा .

विशेष-हरलोक आदि वैज्ञानिक बताते है की समाज विरोधी व्यव्हार वयसंधि में पाया जाता है . जो लगभग 11 या 12 वर्ष की अवस्था होती है . 13 -14 वर्ष की अवस्था में समाज विरोधी व्यव्हार चरमसीमा पर होता है .समाज विरोधी व्यव्हार -

  • दुसरे व्यक्तियों के प्रति अरुचि
  • संगठन के व्यव्हार का विरोध
  • दुसरे व्यक्तियों की आशाओं के विरुद्ध जानबूझकर कार्य
  • दुसरो को सताने में आनन्द ,, आदि 
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